सार की बात – भक्ति सर्वकालिक एवं सार्वजनिक चेतना है। धर्म, जाति,पंथ, संप्रदाय, देश प्रांत आदि में बंटे हुए मनुष्य ने इसके भी विभाजक नाम रख दिए हैं- कृष्ण भक्त, राम भक्त, शिव भक्त, गुरु भक्त आदि। किंतु भक्ति वाली चेतना से अनुप्राणित हुए बिना कोई भी मनुष्य भक्त नहीं होता। सारे भक्तों में यह ऊर्ध्व चेतना प्रवाहित है। भक्ति की ऊर्जा वैश्विक है। उसमें श्रद्धा, समर्पण, प्रेम,रति और आनंद है। यह सर्वत्र एक जैसा है। जैसे पेयजल का एक ही स्वाद है; वैसे ही भक्ति में एक ही रस है- आनंद, स्वयं से मुक्ति, अहम से मुक्ति।
चारों युगों में जिन हनुमान का “उजियारा” और “परताप” रहा है, वह मेरे लिए एक व्यक्ति नहीं है; अनन्य भक्ति का साकार रूप हैं। जैसे ब्रह्म समष्टि चेतन शक्ति है, वैसे ही हनुमान भी समष्टि भाव भक्ति हैं। वह स्वामी की निष्काम सेवा का वैश्विक आदर्श हैं। मेरे लिए वे भक्ति, सेवा और शौर्य की ज्योति हैं।