गीतोपदेष भगवान योगेष्वर वासुदेव का है। वे पूर्ण थे। इसीलिए गीता में पूर्णता की बात है। पूर्णता यानी न जन्म, न मृत्यु। प्रभु कहते हैं कि मेरे भक्त का पुनर्जन्म नहीं होता है। यहां तक भक्ति, ज्ञान व कर्मयोग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
इस किताब में गुरुगीता, अनुगीता, अवधूत गीता और ब्रह्मगीता का भी संक्षिप्त वर्णन किया गया है।