अठारहवें अध्याय के 66 वें श्लोक की व्याख्या। साथ में सृष्टि के प्रथम वैष्णव मंत्र – गोविंदमादिपुरुषं तमहंभजामि- का आलोचन। गीता के उक्त श्लोक में कृष्ण डंके की चोट कहते हैं कि तुम मेरी शरण में आ जाओ ; मै तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा। इस में समझाया गया है – पाप का अर्थ, शरण का मतलब, कृष्ण का आश्वासन, पाप से मुक्ति का तात्पर्य एवं कृष्ण ने गीता में कितनी बार ऐसा कहा है ? किसी भी अवतार ने यों प्रत्यक्ष घोषण नहीं की है। कृष्ण पूर्ण है, योगेश्वर हैं ओर धर्म संस्थापनार्थाय अवतरित हुए हैं इसलिए कहते हैं कि सारी उलझनें छोङ। बस, मेरी शरण में आ जा। चिंता मत कर।
ऐसे ही सृष्टि का पहला वैष्णव मंत्र है – गोविंदमादिपुरुषंतमहंभजामि। यह ब्रह्म संहिता में लिखा हुआ है। इस मंत्र का जाप ब्रह्मा जी ने किया था। परिणाम स्वरूप उन्हें महाविष्णु के दर्शन हुए। यहां बताया गया है कि गोविंद को आदि पुरुष क्यों कहा जाता है ? ब्रह्म ने उक्त मंत्र का जाप क्यों किया ?