ग्यारहवें अध्याय के 55 वें श्लोक की व्याख्या। अर्जुन को कृष्ण ने अपना विश्व रूप एवं चतुर्भुज रूप दिखा दिया। तब वह बोला कि मै अब स्थिर हो गया हूं। तब कृष्ण ने उसे कहा कि जो मनुष्य कर्तापन के अभिमान व भोक्ता भाव की आसक्ति से मुक्त रह कर केवल मेरे निमित्त कर्म करता है वही कर्मण्य है। जो ब्रह्म के बोध को ही स्वयं की परम गति मानता है वही ज्ञानी है। जो सब जीवों में परम चेतना के दर्शन करते हुए निर्वैर अवस्था में ठहर जाता है वही भक्त है। हमने समझाया है कि गीतोपदेश इसी श्लोक के साथ पूरा हो जाता है।